भारतीय स्टॉक बाजार में इंट्रा-डे ट्रेडिंग की रणनीतियां

भारतीय स्टॉक बाजार में इंट्रा-डे ट्रेडिंग की रणनीतियां

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इंट्रा-डे ट्रेडिंग एक जोखिम भरा विकल्प है, लेकिन यदि आप सही रणनीति अपनाते हैं तो इससे अच्छा मुनाफा भी कमा सकते हैं। एक सफल इंट्रा-डे ट्रेडर बनने के लिए, आपको कुछ महत्वपूर्ण रणनीतियों को समझना और उन पर अमल करना होगा। हम आपको इस ब्लॉग पोस्ट में इंट्राडे ट्रेडिंग की कुछ बेहतरीन रणनीतियों के बारे में बताएंगे। 
 

इंट्रा-डे ट्रेडिंग की रणनीतियां

निम्नलिखित कुछ सामान्य रणनीतियाँ हैं जिन्हें व्यापारियों को इंट्राडे ट्रेडिंग करते समय जानना आवश्यक है:

मोमेंटम ट्रेडिंग रणनीति (Momentum Trading Strategy)

मोमेंटम ट्रेडिंग रणनीति इंट्रा-डे ट्रेडिंग की एक बेहद लोकप्रिय रणनीति है। इस रणनीति में, ट्रेडर उन स्टॉक्स पर ध्यान देते हैं जिनमें तेजी से मोमेंटम (गति) आ रही है। ये ट्रेडर ऐसे स्टॉक्स को खरीदते हैं जिनकी कीमतें बढ़ रही हैं, और उन स्टॉक्स को बेचते हैं जिनकी कीमतें गिर रही हैं। इस रणनीति का मकसद मोमेंटम का फायदा उठाना है।

ब्रेकआउट ट्रेडिंग रणनीति (Breakout Trading Strategy)

ब्रेकआउट ट्रेडिंग रणनीति में, ट्रेडर उन स्टॉक्स की तलाश करते हैं जिनकी कीमतें किसी सपोर्ट या रेजिस्टेंस लेवल से टूट रही हैं। जब कोई स्टॉक किसी सपोर्ट लेवल से नीचे गिरता है, तो ट्रेडर उस स्टॉक को शॉर्ट करते हैं (बेचते हैं)। और जब कोई स्टॉक किसी रेजिस्टेंस लेवल से ऊपर जाता है, तो ट्रेडर उस स्टॉक को लॉन्ग करते हैं (खरीदते हैं)।

रिवर्सल ट्रेडिंग रणनीति (Reversal Trading Strategy)

रिवर्सल ट्रेडिंग रणनीति में, ट्रेडर उन स्टॉक्स पर ध्यान देते हैं जिनकी ट्रेंड बदल रही है। उदाहरण के लिए, अगर किसी स्टॉक की कीमतें लगातार बढ़ रही हैं, और अचानक गिरने लगती हैं, तो ट्रेडर इसे एक रिवर्सल के रूप में देखेंगे और उस स्टॉक को शॉर्ट करेंगे। इसी तरह, अगर किसी स्टॉक की कीमतें लगातार गिर रही हैं और अचानक बढ़ने लगती हैं, तो ट्रेडर इसे एक रिवर्सल के रूप में देखेंगे और उस स्टॉक को लॉन्ग करेंगे।

स्कॉल्पिंग ट्रेडिंग रणनीति (Scalping Trading Strategy)

स्कॉल्पिंग ट्रेडिंग रणनीति में, ट्रेडर बहुत छोटी अवधि के लिए स्टॉक्स को खरीदते और बेचते हैं। इस रणनीति का मकसद छोटे-छोटे मुनाफे कमाना है। स्कॉल्पिंग ट्रेडर अक्सर कुछ ही मिनटों या घंटों के लिए स्टॉक्स को होल्ड करते हैं, और फिर उन्हें बेच देते हैं। यह एक बहुत ही जोखिम भरी रणनीति है, क्योंकि छोटे समय में ही ट्रेडिंग की जाती है।

मूविंग एवरेज क्रॉसओवर रणनीति (Moving Average Crossover Strategy)

मूविंग एवरेज क्रॉसओवर रणनीति में, ट्रेडर दो मूविंग एवरेज लाइनों को देखते हैं। जब एक लाइन दूसरी लाइन को क्रॉस कर लेती है, तो ट्रेडर इसे एक संकेत के रूप में देखते हैं और उसके आधार पर ट्रेडिंग करते हैं। उदाहरण के लिए, अगर 50-दिन की मूविंग एवरेज लाइन 200-दिन की मूविंग एवरेज लाइन को ऊपर की ओर क्रॉस कर लेती है, तो ट्रेडर इसे एक बुलिश (तेजी) का संकेत मानते हैं और उस स्टॉक को लॉन्ग (खरीद) करते हैं। इसके विपरीत, अगर 50-दिन की मूविंग एवरेज लाइन 200-दिन की मूविंग एवरेज लाइन को नीचे की ओर क्रॉस कर जाती है, तो ट्रेडर इसे एक बेयरिश (मंदी) का संकेत मानते हैं और उस स्टॉक को शॉर्ट (बेच) करते हैं।

गैप एंड गो रणनीति (Gap and Go Strategy)

गैप एंड गो रणनीति में, ट्रेडर उन स्टॉक्स पर ध्यान देते हैं जिनकी कीमतें पिछले दिन के बंद भाव से काफी ऊपर या नीचे खुल रही हैं। जब कोई स्टॉक पिछले दिन के बंद भाव से काफी ऊपर खुलता है, तो इसे "गैप अप" कहते हैं। इसके विपरीत, जब कोई स्टॉक पिछले दिन के बंद भाव से काफी नीचे खुलता है, तो इसे "गैप डाउन" कहते हैं। गैप अप के मामले में, ट्रेडर उस स्टॉक को लॉन्ग करते हैं, और गैप डाउन के मामले में, ट्रेडर उस स्टॉक को शॉर्ट करते हैं।

पिवट पॉइंट रणनीति (Pivot Point Strategy)

पिवट पॉइंट रणनीति में, ट्रेडर उन स्तरों पर ध्यान देते हैं जहां बाजार की दिशा बदलने वाली है। ये स्तर सपोर्ट और रेजिस्टेंस के स्तर होते हैं। पिवट पॉइंट्स को तय करने के लिए कुछ गणित समीकरणों का इस्तेमाल किया जाता है। ट्रेडर इन पिवट पॉइंट्स के आसपास ट्रेडिंग करते हैं और उनका इस्तेमाल स्टॉप-लॉस और टेक-प्रॉफिट लेवल तय करने के लिए भी करते हैं।

पुलबैक ट्रेडिंग रणनीति (Pullback Trading Strategy) 

पुलबैक ट्रेडिंग रणनीति में, ट्रेडर मौजूदा ट्रेंड के विपरीत छोटे समय के लिए होने वाले मूवमेंट्स पर ध्यान देते हैं। उदाहरण के लिए, अगर किसी स्टॉक में तेजी की ट्रेंड चल रही है, और अचानक उसकी कीमत थोड़ी गिर जाती है, तो ट्रेडर इसे एक पुलबैक के रूप में देखते हैं और उस स्टॉक को खरीदते हैं। इसी तरह, अगर किसी स्टॉक में मंदी की ट्रेंड चल रही है, और अचानक उसकी कीमत थोड़ी बढ़ जाती है, तो ट्रेडर इसे एक पुलबैक के रूप में देखते हैं और उस स्टॉक को बेचते हैं।

बुल फ्लैग ट्रेडिंग रणनीति (Bull Flag Trading Strategy)

बुल फ्लैग ट्रेडिंग रणनीति में, ट्रेडर उन स्टॉक्स पर ध्यान देते हैं जिनमें एक लंबी तेजी के बाद थोड़ा सा कंसोलिडेशन देखा जाता है। इस पैटर्न को "बुल फ्लैग" कहा जाता है। बुल फ्लैग के बाद, स्टॉक की कीमतें फिर से तेजी से बढ़ने लगती हैं। ट्रेडर इस रणनीति में बुल फ्लैग के बाद स्टॉक को लॉन्ग करते हैं।

CFD रणनीति (CFD Strategy)

CFD (कॉन्ट्रैक्ट्स फॉर डिफरेंस) एक प्रकार का डेरिवेटिव प्रोडक्ट है जिसमें ट्रेडर किसी भी अंडरलाइंग एसेट (जैसे शेयर, कमोडिटी, इंडेक्स आदि) को वास्तव में खरीदे बिना उस पर ट्रेडिंग कर सकते हैं। CFD में, ट्रेडर सिर्फ एक छोटी सी मार्जिन रकम जमा करते हैं और उसके बाद पूरी पोजिशन की वैल्यू पर ट्रेडिंग करते हैं। CFD लेवरेज्ड प्रोडक्ट्स होते हैं, इसलिए इनमें ज्यादा मुनाफा कमाने की संभावना होती है, लेकिन साथ ही ज्यादा नुकसान होने का भी खतरा रहता है।
 

सामग्री की तालिका

  1. इंट्रा-डे ट्रेडिंग की रणनीतियां
  2. इंट्रा-डे ट्रेडिंग के नियम

इंट्रा-डे ट्रेडिंग के नियम


 इंट्रा-डे ट्रेडिंग करते समय, कुछ महत्वपूर्ण नियमों का पालन करना जरूरी है। ये नियम निम्नलिखित हैं: 

  • नियम 1: समय का ध्यान रखें - कम व्यस्त और कम अस्थिर समय पर ट्रेडिंग न करें। सुबह 9:30 से 11 बजे और दोपहर 1 से 2:30 बजे के बीच के सबसे व्यस्त समय पर ट्रेडिंग करें। 
  • नियम 2: अपनी ट्रेडिंग सेटअप पर अडिग रहें - अपने एंट्री और एक्जिट पॉइंट्स के लिए एक स्पष्ट सेटअप तय करें और उसी के अनुसार ट्रेडिंग करें। अपनी सेटअप के संकेतों पर भरोसा करके विश्वास के साथ ट्रेड करें। 
  • नियम 3: उम्मीदों से बचें - अपनी सेटअप के संकेतों के अनुसार तुरंत प्रतिक्रिया दें। यदि बाजार आपके लक्ष्य के विपरीत जा रहा है तो उम्मीदों में न बैठें, क्योंकि इससे स्टॉप-लॉस का खतरा बढ़ जाएगा।
  • नियम 4: धीरे-धीरे पोजिशन बढ़ाएं - शुरुआत में छोटी पोजिशन से शुरू करें, अनुभव और लगातार मुनाफे आने पर धीरे-धीरे अपनी पोजिशन साइज बढ़ाएं। 
  • नियम 5: अच्छी लिक्विडिटी वाले स्टॉक्स का चयन करें - कम लिक्विडिटी वाले स्टॉक्स से बचें क्योंकि इनमें ट्रेड एक्जिक्यूशन मुश्किल हो सकता है। उच्च लिक्विडिटी वाले स्टॉक्स का चयन करें ताकि आप सही समय पर बाय और सेल कर सकें।   
  • नियम 6: बाजार बंद होने से पहले सारे ट्रेड बंद करें - मुनाफे या नुकसान की स्थिति से बेपरवाह होकर, शाम 3:30 बजे से पहले अपने सभी इंट्रा-डे ट्रेड्स को बंद कर दें। इससे आपकी पोजिशन आगे नहीं बढ़ेगी और आप अतिरिक्त नुकसान से बच जाएंगे। 
  • नियम 7: हमेशा बाजार पर नजर रखें - ट्रेडेबल और उच्च लिक्विडिटी वाले स्टॉक्स की एक सूची बनाएं और उसे बार-बार अपडेट करते रहें। ट्रेडिंग घंटों के दौरान ध्यान बनाए रखें और किसी भी ट्रेडिंग अवसर को न चूकें ताकि आप सही निर्णय ले सकें।
     

समाप्ति
इंट्रा-डे ट्रेडिंग में सफल होने के लिए, आपको कुछ महत्वपूर्ण रणनीतियों को अपनाना होगा। मोमेंटम, ब्रेकआउट, रिवर्सल, स्कॉल्पिंग, मूविंग एवरेज क्रॉसओवर, गैप एंड गो और पिवट पॉइंट कुछ ऐसी ही रणनीतियां हैं जो इंट्रा-डे ट्रेडर्स के लिए बहुत उपयोगी साबित हो सकती हैं। इनमें से रिवर्सल ट्रेडिंग रणनीति सबसे कठिन माना जाता है, क्योंकि इसमें आपको बाजार की ट्रेंड के विपरीत जाना पड़ता है।  

अगर आप इंट्रा-डे ट्रेडिंग शुरू करना चाहते हैं तो BlinkX ट्रेडिंग ऐप को डाउनलोड करके आसानी से मिनटों में ही अपना डीमैट खाता खोल सकते हैं। BlinkX एक विश्वसनीय प्लेटफॉर्म है जिसमें कोई छिपी हुई फीस नहीं है। इस ऐप के जरिए आप बाजार की हर खबर से अपडेट रह सकते हैं और कस्टमाइज्ड अलर्ट सेट कर सकते हैं। चाहे आप मोबाइल ऐप पर हों या वेब वर्जन पर, आप सभी प्लेटफॉर्म्स के बीच आसानी से ट्रांजिशन कर सकते हैं।

शुरुआत में ट्रेडिंग कॉन्सेप्ट्स को समझने में समय लें, प्रैक्टिस करें और रियल ट्रेडिंग शुरू करने से पहले आत्मविश्वास बनाएं। आप अपनी पसंद के हिसाब से डैशबोर्ड को कस्टमाइज कर सकते हैं और इस तरह अपनी ऑनलाइन ट्रेडिंग यात्रा को रोमांचक बना सकते हैं।

इंट्रा-डे ट्रेडिंग से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

इंट्रा-डे ट्रेडिंग काफी जोखिम भरा होता है क्योंकि इसमें कम समय में निर्णय लेने होते हैं। इसलिए सही रणनीति और रिस्क मैनेजमेंट बहुत जरूरी है।

इंट्रा-डे ट्रेडिंग सुबह 9:15 से शाम 3:30 बजे के बीच की जाती है, जब शेयर बाजार खुला रहता है।

इंट्रा-डे ट्रेडिंग कोई भी व्यक्ति कर सकता है बशर्ते उसके पास डीमैट और ट्रेडिंग अकाउंट हो और वह जोखिम उठाने के लिए तैयार हो।

मोमेंटम, ब्रेकआउट, रिवर्सल, स्कॉल्पिंग, मूविंग एवरेज क्रॉसओवर इत्यादि इंट्रा-डे ट्रेडिंग की प्रमुख रणनीतियां हैं।

शुरुआत में छोटी रकम से ट्रेडिंग करनी चाहिए और धीरे-धीरे ही पोजिशन साइज बढ़ानी चाहिए। साथ ही, डेमो ट्रेडिंग से अभ्यास करना चाहिए।

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