भारत का बजटरी प्रक्रिया

भारत का बजटरी प्रक्रिया

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बजट एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है जो भारत में हर साल होती है। इसमें सरकार बताती है कि आने वाले साल में वह कितना पैसा खर्च करेगी और कहां से पैसा आएगा।  बजट को संविधान के अनुच्छेद 112 में 'वार्षिक वित्तीय विवरण' कहा गया है। इस प्रक्रिया का राष्ट्र के भविष्य पर गहरा प्रभाव पड़ता है, क्योंकि यह तय करती है कि सरकार किन क्षेत्रों में कितना खर्च करेगी और पैसा कहां से आएगा।

बजट के बाद क्या होता है?

बजट प्रस्तुत होने के बाद, लोकसभा को तीन विवरण प्राप्त होते हैं:

  1. मध्यावधि राजकोषीय नीति विवरण
  2. राजकोषीय नीति रणनीति विवरण
  3. समष्टि आर्थिक ढांचा विवरण

सामग्री की तालिका

  1. बजट के बाद क्या होता है?
  2. बजट दस्तावेजों का वितरण प्रोटोकॉल 
  3. बजट चर्चा की गतिशीलता
  4. बजट बनाने की प्रक्रिया
  5. चरण 1: खर्च और आमदनी का अनुमान
  6. चरण 2: घाटे का पहला अनुमान
  7. चरण 3: घाटे को कम करना 
  8. चरण 4: बजट प्रस्तुति और मंजूरी

बजट दस्तावेजों का वितरण प्रोटोकॉल 

रेलवे बजट के लिए, रेल मंत्री के भाषण के समापन पर सदस्यों को प्रकाशन काउंटर से सेट वितरित किए जाते हैं। वहीं, सामान्य बजट के लिए, वित्त मंत्री के भाषण, वित्त विधेयक पेश करने और सदन की स्थगित होने के बाद, सदस्यों को आंतरिक और बाहरी लॉबी या राज्यवार बूथों पर सेट वितरित किए जाते हैं।

बजट चर्चा की गतिशीलता

बजट पर चर्चा दो चरणों में होती है पहले सामान्य चर्चा होती है, फिर विभिन्न अनुदानों की मांगों पर विस्तृत चर्चा और मतदान होता है।

चर्चा के लिए समय आवंटन 

संसद में बजट पर चर्चा करने के लिए, हर मंत्रालय को समय दिया जाता है। लेकिन वहां इतना समय नहीं है कि सभी मंत्रालयों पर विस्तार से बात की जा सके। इसलिए कुछ मंत्रालयों की बात छोटे समय में की जाती है और कुछ पर बिना बात किए ही वोट कर दिया जाता है।

बजट आने के बाद, संसद के काम देखने वाले मंत्री सभी पार्टियों के नेताओं से मिलते हैं। वे तय करते हैं कि किन मंत्रालयों पर चर्चा करनी है। फिर एक समिति बनाई जाती है जो यह तय करती है कि हर मंत्रालय पर कितना समय चर्चा करनी है। यह समिति चर्चा का क्रम भी तय करती है।

चर्चा कार्यक्रम का प्रकाशन

जब समय और क्रम तय हो जाता है, तो एक सूची छपवाई जाती है जिसमें दिखाया जाता है कि किस दिन किस मंत्रालय पर चर्चा होगी। यह सूची सभी सांसदों को दी जाती है ताकि वे जान सकें कि कब किस विषय पर बात होगी। सरकार इस क्रम को बदल भी सकती है अगर जरूरत पड़े।

बजट बनाने की प्रक्रिया

बजट बनाना एक लंबी प्रक्रिया है और इसमें कई चरण शामिल होते हैं। यह प्रक्रिया आमतौर पर साल के तीसरे हिस्से में शुरू हो जाती है। इस पूरी प्रक्रिया को चार मुख्य चरणों में बांटा जा सकता है।

चरण 1: खर्च और आमदनी का अनुमान

बजट बनाने की प्रक्रिया का पहला चरण है खर्च और आमदनी का अनुमान लगाना। इसमें सरकार के सभी विभाग अपने आगामी खर्चों और प्राप्त होने वाली आमदनी का अनुमान देते हैं।

खर्च का अनुमान
इस चरण में, सरकार के हर विभाग को अपने खर्च का अनुमान देना होता है। वे दो तरह के खर्च का अनुमान देते हैं:

  1. योजना खर्च: यह वो खर्च है जो सरकार की नई योजनाओं और परियोजनाओं पर होगा। इस खर्च पर योजना आयोग से बात की जाती है।
  2. गैर-योजना खर्च: यह वो खर्च है जो सरकार के दैनिक कामों पर होगा, जैसे कर्मचारियों के वेतन, ब्याज भुगतान और सब्सिडी देना। इस खर्च का अनुमान वित्तीय सलाहकार बनाते हैं।

आमदनी का अनुमान
इस चरण में, सरकार को अनुमान लगाना होता है कि आगामी साल में उसे कितनी आमदनी होगी। यह दो तरह की होती है:

  1. पूंजीगत आमदनी: इसमें वो पैसा शामिल होता है जो सरकार को ऋण वसूली, कंपनियों के हिस्सों को बेचने और उधार लेने से मिलता है।
  2. चालू आमदनी: इसमें वो पैसा शामिल होता है जो सरकार को कर, सरकारी कंपनियों से मुनाफा और ऋण पर ब्याज के रूप में मिलता है।

चरण 2: घाटे का पहला अनुमान

इस चरण में, सरकार खर्च और आमदनी के अनुमानों को मिलाकर देखती है कि क्या खर्च आमदनी से ज्यादा है या कम। अगर खर्च आमदनी से ज्यादा है, तो यह घाटा कहलाता है।

सरकार अपने विशेषज्ञों से बात करके तय करती है कि घाटे को पूरा करने के लिए कितना उधार लेना होगा। कितना उधार लेना है, यह इस बात पर निर्भर करता है कि घाटा कितना है।

चरण 3: घाटे को कम करना 

इस चरण में, सरकार कोशिश करती है कि घाटा कम से कम हो। इसके लिए वह दो चीजें कर सकती है:

  1. कर दरों में बदलाव करना, ताकि उसे ज्यादा आमदनी मिले।
  2. खर्च में कटौती करना, ताकि खर्च कम हो जाए।

खर्च में कटौती करना आसान नहीं होता है, क्योंकि सरकार को लोगों को सब्सिडी देनी पड़ती है और वेतन भी देना पड़ता है। इसलिए आमतौर पर कर दरों में बदलाव किया जाता है।

चरण 4: बजट प्रस्तुति और मंजूरी

इन सभी चरणों के बाद, सरकार को अगले साल का बजट तैयार करना होता है। यह बजट हर साल 28 फरवरी को संसद में पेश किया जाता है।

संविधान के अनुसार, संसद को इस बजट की जांच करनी होती है। वित्त मंत्री बजट के बारे में संसद के दोनों सदनों में बताते हैं। वे यह भी बताते हैं कि किन चीजों पर कितना कर लगेगा और कितनी दरों से लगेगा।

संसद को इस बजट को मंजूरी देनी होती है। अगर संसद मंजूरी दे देती है, तो राष्ट्रपति इस पर हस्ताक्षर करते हैं। इसके बाद यह बजट कानून बन जाता है और मई तक लागू हो जाता है।

समाप्ति 
भारत की सरकार हर साल एक बजट बनाती है। यह बताता है कि सरकार किस चीज पर कितना पैसा खर्च करेगी और उसे कितना पैसा मिलेगा। यह एक बहुत बड़ी योजना होती है। इस योजना को बनाने में बहुत समय लगता है। इसकी शुरुआत साल के तीसरे हिस्से में होती है। कई लोग मिलकर इसे तैयार करते हैं। आखिरकार वित्त मंत्री इस बजट को संसद में पेश करते हैं। बजट में सरकार बताती है कि उसकी प्राथमिकताएं क्या हैं और वह पैसे को कहां-कहां खर्च करेगी। यह बताता है कि सरकार किस चीज को महत्व देती है।

यह बजट आम लोगों के जीवन को भी प्रभावित करता है। उदाहरण के लिए, अगर सरकार शिक्षा पर ज्यादा पैसा खर्च करती है, तो स्कूल और कॉलेज बेहतर हो सकते हैं। इस प्रकार, बजट भारत के वर्तमान और भविष्य को प्रभावित करने का एक महत्वपूर्ण तरीका है।

बजट से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

भारत में केंद्रीय बजट हर साल 28 फरवरी को संसद में पेश किया जाता है।

बजट में सरकार के आगामी वित्त वर्ष के खर्च और आमदनी का अनुमान शामिल होता है।

भारत का बजट दो भागों - रेलवे बजट और सामान्य बजट में बंटा हुआ है।

बजट बनाने की प्रक्रिया चार चरणों - व्यय और राजस्व अनुमान, घाटे का अनुमान, घाटे को कम करना और बजट प्रस्तुति में होती है।

बजट आमतौर पर मई महीने तक संसदीय जांच और अनुमोदन के बाद कानून बन जाता है।

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