स्वैप और ऑप्शन के बीच अंतर: एक सरल गाइड
- 26 Aug 2024
- By: BlinkX Research Team
स्वैप और ऑप्शन दोनों ही डेरिवेटिव्स के प्रकार हैं जो शेयर बाज़ार में इस्तेमाल किए जाते हैं। लेकिन इनमें कुछ महत्वपूर्ण अंतर हैं जिन्हें समझना जरूरी है। इस ब्लॉग में हम इन दोनों के बारे में विस्तार से जानेंगे और समझेंगे कि ये कैसे काम करते हैं। चाहे आप एक नए निवेशक हों या अनुभवी ट्रेडर, यह जानकारी आपके लिए बहुत उपयोगी होगी।
ऑप्शन क्या होते हैं?
ऑप्शन एक ऐसा अनुबंध होता है जो आपको किसी संपत्ति को एक निश्चित कीमत पर और एक निश्चित समय तक खरीदने या बेचने का अधिकार देता है, लेकिन यह आपकी जिम्मेदारी नहीं होती। यह संपत्ति कोई शेयर, करेंसी या कोई अन्य वित्तीय उपकरण हो सकता है।
ऑप्शन के दो मुख्य प्रकार होते हैं:
1. कॉल ऑप्शन: यह आपको किसी संपत्ति को एक निश्चित कीमत पर खरीदने का अधिकार देता है।
2. पुट ऑप्शन: यह आपको किसी संपत्ति को एक निश्चित कीमत पर बेचने का अधिकार देता है।
ऑप्शन खरीदने के लिए आपको एक प्रीमियम देना होता है। यह प्रीमियम ऑप्शन की कीमत होती है। स्ट्राइक प्राइस वह कीमत होती है जिस पर आप संपत्ति खरीद या बेच सकते हैं।
सामग्री की तालिका
- ऑप्शन क्या होते हैं?
- स्वैप क्या होते हैं?
- स्वैप और ऑप्शन के बीच मुख्य अंतर - H2 Table Format
- स्वैप और ऑप्शन का उदाहरण
- ऑप्शन का उदाहरण
- स्वैप्शन क्या है?
- स्वैप और ऑप्शन से जुड़े जोखिम
- स्वैप और ऑप्शन का उपयोग
स्वैप क्या होते हैं?
स्वैप एक ऐसा अनुबंध होता है जिसमें दो पक्ष अपने वित्तीय दायित्वों या कॅश फ्लो को आपस में बदलने पर सहमत होते हैं। यह आमतौर पर दो कंपनियों के बीच होता है जो अपने जोखिम को कम करना चाहते हैं।
स्वैप के कुछ प्रमुख प्रकार हैं
1. ब्याज दर स्वैप: इसमें दो कंपनियां अपनी ब्याज दरों को बदलती हैं। उदाहरण के लिए, एक कंपनी फिक्स्ड रेट से वेरिएबल रेट में बदल सकती है।
2. करेंसी स्वैप: इसमें दो कंपनियां अलग-अलग मुद्राओं में अपने कर्ज और ब्याज भुगतान को बदलती हैं।
3. कमोडिटी स्वैप: इसमें कंपनियां किसी कमोडिटी की फिक्स्ड और वेरिएबल कीमतों को बदलती हैं।
स्वैप और ऑप्शन के बीच मुख्य अंतर - H2 Table Format
अब जब हमने स्वैप और ऑप्शन के बारे में जान लिया है, तो आइए देखें इनके बीच क्या मुख्य अंतर हैं:
पहलू | ऑप्शन | स्वैप |
अधिकार बनाम दायित्व | खरीदार को अधिकार मिलता है, लेकिन कोई दायित्व नहीं होता। | दोनों पक्षों को एक-दूसरे के प्रति दायित्व होता है। |
प्रीमियम | खरीदार को प्रीमियम देना होता है। | आमतौर पर कोई प्रीमियम नहीं होता। |
ट्रेडिंग | एक्सचेंज पर और OTC (ओवर-द-काउंटर) दोनों तरह से ट्रेड होते हैं। | ज्यादातर OTC ट्रेड होते हैं। |
मानकीकरण | अधिकतर मानकीकृत होते हैं। | अक्सर कस्टमाइज्ड होते हैं। |
जोखिम | खरीदार का जोखिम प्रीमियम तक सीमित होता है। | दोनों पक्षों को जोखिम होता है। |
उद्देश्य | मुख्य रूप से बचाव (हेजिंग) और सट्टेबाजी के लिए। | मुख्य रूप से जोखिम प्रबंधन के लिए। |
समय सीमा | निश्चित समय सीमा होती है। | लंबी अवधि के लिए हो सकते हैं। |
लाभ/हानि | लाभ असीमित हो सकता है, हानि सीमित होती है। | लाभ और हानि दोनों असीमित हो सकते हैं। |
स्वैप और ऑप्शन का उदाहरण
आइए एक उदाहरण के साथ स्वैप और ऑप्शन को समझें:
स्वैप का उदाहरण
मान लीजिए कि कंपनी X के पास 4% फिक्स्ड रेट पर एक बॉन्ड है। कंपनी X चिंतित है कि अगर ब्याज दरें बढ़ीं तो बॉन्ड का मूल्य गिर जाएगा। दूसरी ओर, कंपनी Y के पास 4% वेरिएबल रेट पर एक बॉन्ड है और वह चिंतित है कि अगर ब्याज दरें गिरीं तो उसका मुनाफा प्रभावित होगा।
इस समस्या को हल करने के लिए, कंपनी X और Y एक स्वैप करने पर सहमत होती हैं। इस समझौते के तहत:
- कंपनी X, कंपनी Y को नियमित रूप से 4% ब्याज देगी।
- कंपनी Y, कंपनी X को वर्तमान बाज़ार दर के आधार पर वेरिएबल ब्याज देगी, जो शुरुआत में 4% तय की गई है।
इस स्वैप के माध्यम से:
- कंपनी X अपने फिक्स्ड रेट बॉन्ड को वेरिएबल रेट बॉन्ड में बदलकर बढ़ती ब्याज दरों से खुद को बचा सकती है।
- कंपनी Y अपने वेरिएबल रेट बॉन्ड को फिक्स्ड रेट बॉन्ड में बदलकर गिरती ब्याज दरों से खुद को बचा सकती है।
ऑप्शन का उदाहरण
अब मान लीजिए कि कंपनी A के शेयर की कीमत 120 रुपये है। मैं डेरिवेटिव्स मार्केट में 130 रुपये के स्ट्राइक प्राइस और एक महीने की एक्सपायरी डेट वाला एक कॉल ऑप्शन 15 रुपये के प्रीमियम पर खरीदता हूं।
अगर एक्सपायरी डेट पर:
- शेयर की कीमत 120 रुपये से बढ़कर 150 रुपये हो जाती है, तो मैं अपने ऑप्शन का इस्तेमाल करके 130 रुपये पर शेयर खरीद सकता हूं और उसे 150 रुपये पर बेच सकता हूं।
- मेरा लाभ होगा: 150 - 130 - 15 (प्रीमियम) = 5 रुपये प्रति शेयर।
यह उदाहरण दिखाता है कि कैसे ऑप्शन संपत्ति की कीमतों में बदलाव से लाभ उठाने का मौका देते हैं।
स्वैप्शन क्या है?
स्वैप्शन एक विशेष प्रकार का डेरिवेटिव कॉन्ट्रैक्ट है जो स्वैप और ऑप्शन का मिश्रण है। यह धारक को भविष्य में एक निश्चित समय पर और निश्चित शर्तों के तहत एक ब्याज दर स्वैप में प्रवेश करने का विकल्प देता है।
स्वैप्शन की मुख्य विशेषताएं:
- यह खरीदार को एक निश्चित ब्याज दर स्वैप में प्रवेश करने का अधिकार देता है, लेकिन यह उसकी जिम्मेदारी नहीं होती।
- इसमें आमतौर पर फिक्स्ड और वेरिएबल ब्याज दर भुगतानों का आदान-प्रदान शामिल होता है।
स्वैप्शन कॉन्ट्रैक्ट में स्वैप और ऑप्शन दोनों के तत्व होते हैं।
स्वैप और ऑप्शन से जुड़े जोखिम
हर वित्तीय उपकरण की तरह, स्वैप और ऑप्शन के साथ भी कुछ जोखिम जुड़े हुए हैं। आइए इन्हें समझें:
स्वैप से जुड़े जोखिम
- ब्याज दर जोखिम: अगर बाज़ार की ब्याज दरें अप्रत्याशित रूप से बदलती हैं, तो एक पक्ष को नुकसान हो सकता है।
- काउंटरपार्टी जोखिम: चूंकि स्वैप आमतौर पर निजी अनुबंध होते हैं, अगर एक पक्ष अपने दायित्वों को पूरा नहीं कर पाता, तो दूसरे पक्ष को नुकसान हो सकता है।
- बाज़ार जोखिम: अगर बाज़ार अप्रत्याशित दिशा में चलता है, तो स्वैप किए गए कॅश फ्लो का मूल्य कम हो सकता है।
- तरलता जोखिम: स्वैप कस्टमाइज्ड समझौते होते हैं, इसलिए इन्हें बेचना या समाप्त करना मुश्किल हो सकता है।
ऑप्शन से जुड़े जोखिम
- मूल्य उतार-चढ़ाव का जोखिम: ऑप्शन की कीमत अंतर्निहित संपत्ति की कीमत में बदलाव से बहुत प्रभावित होती है। अगर संपत्ति की कीमत अनुकूल दिशा में नहीं बढ़ती, तो ऑप्शन बेकार हो सकता है।
- समय क्षय का जोखिम: ऑप्शन की एक निश्चित समय सीमा होती है। जैसे-जैसे समाप्ति तिथि नजदीक आती है, ऑप्शन का मूल्य कम होता जाता है।
- अस्थिरता का जोखिम: बाज़ार की अस्थिरता ऑप्शन की कीमत को प्रभावित करती है। बहुत अधिक अस्थिर बाज़ार में ऑप्शन का मूल्य तेजी से बदल सकता है।
- प्रीमियम हानि का जोखिम: ऑप्शन खरीदने के लिए एक प्रीमियम का भुगतान करना पड़ता है। अगर अपेक्षित मूल्य परिवर्तन नहीं होता, तो यह प्रीमियम खो सकता है।
स्वैप और ऑप्शन का उपयोग
स्वैप और ऑप्शन का उपयोग विभिन्न उद्देश्यों के लिए किया जाता है:
- जोखिम प्रबंधन: दोनों उपकरण जोखिम को कम करने में मदद करते हैं। उदाहरण के लिए, एक कंपनी ब्याज दर स्वैप का उपयोग करके अपने ऋण पर ब्याज दर जोखिम को कम कर सकती है।
- हेजिंग: ऑप्शन का उपयोग अक्सर पोर्टफोलियो को नुकसान से बचाने के लिए किया जाता है। उदाहरण के लिए, एक निवेशक अपने शेयरों पर पुट ऑप्शन खरीदकर अपने पोर्टफोलियो को गिरते बाज़ार से बचा सकता है।
- स्पेकुलेशन: कुछ व्यापारी बाज़ार की दिशा पर अनुमान लगाकर लाभ कमाने के लिए ऑप्शन का उपयोग करते हैं।
- कॅश फ्लो प्रबंधन: स्वैप का उपयोग कंपनियों द्वारा अपने कॅश फ्लो को बेहतर ढंग से प्रबंधित करने के लिए किया जाता है।
- लागत कम करना: कुछ मामलों में, स्वैप का उपयोग उधार लेने की लागत को कम करने के लिए किया जा सकता है।
समाप्ति
स्वैप और ऑप्शन दोनों ही महत्वपूर्ण वित्तीय उपकरण हैं जो निवेशकों और कंपनियों को अपने जोखिम को प्रबंधित करने और वित्तीय लक्ष्यों को प्राप्त करने में मदद करते हैं। हालांकि, इनका उपयोग करते समय सावधानी बरतनी चाहिए क्योंकि इनमें जोखिम भी शामिल हैं।
अगर आप इन उपकरणों का उपयोग करना चाहते हैं, तो यह महत्वपूर्ण है कि आप पहले इन्हें अच्छी तरह से समझें। एक विश्वसनीय ब्रोकर या वित्तीय सलाहकार से परामर्श लेना हमेशा एक अच्छा विचार होता है।
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