कॅश मार्केट और डेरिवेटिव मार्केट के बीच अंतर
- 28 Aug 2024
- By: BlinkX Research Team
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कॅश मार्केट में आप सीधे शेयर या वस्तुएं खरीदते और बेचते हैं। यहां आप वास्तविक चीजों का लेन-देन करते हैं। डेरिवेटिव मार्केट में आप भविष्य की कीमतों पर सौदा करते हैं। यहां आप वादा करते हैं कि आप आगे चलकर कुछ खरीदेंगे या बेचेंगे। यह ज्यादा जोखिम भरा होता है, लेकिन ज्यादा कमाई का मौका भी देता है।
इस ब्लॉग में हम समझेंगे कॅश मार्केट और डेरिवेटिव मार्केट के बीच के अंतर के बारे में। ये दोनों ही वित्तीय बाज़ार के महत्वपूर्ण हिस्से हैं, लेकिन इनमें कुछ बुनियादी फर्क हैं। आइए समझते हैं कि ये दोनों मार्केट कैसे काम करते हैं और आम निवेशक के लिए क्या मायने रखते हैं। साथ ही यह भी देखेंगे कि किस तरह के निवेशकों के लिए कौन सा मार्केट ज्यादा उपयुक्त हो सकता है।
कॅश मार्केट क्या है?
कॅश मार्केट को स्पॉट मार्केट भी कहा जाता है। यहाँ वित्तीय संपत्तियों जैसे शेयर, बॉन्ड, करेंसी आदि का तुरंत लेन-देन होता है। इसकी कुछ मुख्य विशेषताएं हैं:
- तत्काल ट्रेडिंग: जब आप कॅश मार्केट में कोई शेयर खरीदते हैं, तो उसका स्वामित्व तुरंत आपको मिल जाता है।
- वास्तविक संपत्ति: यहाँ आप असली शेयर या बॉन्ड खरीदते हैं, न कि उनके कॉन्ट्रैक्ट्स।
- लचीली मात्रा: आप एक शेयर से लेकर कितनी भी संख्या में खरीद-बिक्री कर सकते हैं।
- लाभांश का अधिकार: अगर आप शेयर खरीदते हैं, तो आपको कंपनी के लाभांश का अधिकार मिलता है।
उदाहरण: मान लीजिए आपने कॅश मार्केट में रिलायंस इंडस्ट्रीज के 10 शेयर 2500 रुपये प्रति शेयर के हिसाब से खरीदे। आपको तुरंत इन शेयरों के उन हिस्सों का मालिक बना दिया जाएगा और आप कंपनी के लाभांश के हकदार होंगे।
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सामग्री की तालिका
- कॅश मार्केट क्या है?
- डेरिवेटिव मार्केट क्या है?
- कॅश मार्केट बनाम डेरिवेटिव मार्केट: मुख्य अंतर
- डेरिवेटिव मार्केट के प्रमुख प्रतिभागी
- डेरिवेटिव ट्रेडिंग में ध्यान देने योग्य बातें
डेरिवेटिव मार्केट क्या है?
डेरिवेटिव मार्केट में किसी वास्तविक संपत्ति के आधार पर बने वित्तीय साधनों का कारोबार होता है। इसकी प्रमुख विशेषताएं हैं:
- अनुबंध आधारित: यहाँ आप किसी संपत्ति को सीधे नहीं, बल्कि उसके अनुबंध को खरीदते-बेचते हैं।
- भविष्य की कीमत पर आधारित: इसमें भविष्य में होने वाले लेन-देन की कीमत आज तय की जाती है।
- जोखिम प्रबंधन: यह निवेशकों को अपने जोखिम को कम करने में मदद करता है।
- उच्च लाभ की संभावना: कम पूंजी के साथ बड़े पोजीशन ले सकते हैं, जिससे ज्यादा मुनाफा कमाने की गुंजाइश होती है।
उदाहरण: मान लीजिए आपने NIFTY का एक फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट 20,000 के स्तर पर खरीदा। अब अगर एक महीने बाद NIFTY 21,000 पर पहुंच जाता है, तो आपको 1,000 अंकों का फायदा होगा।
कॅश मार्केट बनाम डेरिवेटिव मार्केट: मुख्य अंतर
आइए अब एक टेबल के माध्यम से इन दोनों मार्केट्स के बीच के प्रमुख अंतरों को समझें:
पहलू | कॅश मार्केट | डेरिवेटिव मार्केट |
मतलब | तुरंत संपत्ति की खरीद-बिक्री | फ्यूचर्स और ऑप्शंस जैसे साधनों का व्यापार |
मालिकाना हक | खरीद पर तुरंत उस ख़रीदे हुए हिस्से पर हक़ मिलता हैं। | कभी मालिक नहीं बनते |
लॉट साइज | एक यूनिट भी खरीद-बेच सकते हैं | एक यूनिट नहीं, निश्चित लॉट में ही व्यापार |
लाभांश | लाभांश मिलता है | लाभांश नहीं मिलता |
ट्रेडिंग खाता | डीमैट और ट्रेडिंग खाता जरूरी | सिर्फ फ्यूचर ट्रेडिंग खाता चाहिए |
संपत्ति का प्रकार | सिर्फ मूर्त संपत्तियों का लेन-देन | मूर्त और अमूर्त दोनों तरह की संपत्तियों का लेन-देन |
खरीद-बिक्री की मात्रा | कोई भी संख्या में, एक भी यूनिट | तय लॉट साइज में ही, एक यूनिट नहीं |
समय सीमा | जीवन भर का मालिकाना हक | एक निश्चित तारीख तक सीमित |
संपत्ति की प्रकृति | सिर्फ भौतिक संपत्तियाँ | भौतिक और अभौतिक दोनों संपत्तियाँ |
ट्रेडिंग तरीका | डीमैट और ट्रेडिंग दोनों खाते जरूरी | सिर्फ फ्यूचर ट्रेडिंग खाता काफी |
लाभांश का अधिकार | लाभांश पाने का अधिकार होता है | लाभांश पाने का कोई अधिकार नहीं |
स्वामित्व | खरीदी गई संपत्ति के मालिक बनते हैं | खरीदी गई संपत्ति के मालिक नहीं बनते |
डेरिवेटिव मार्केट के प्रमुख प्रतिभागी
डेरिवेटिव मार्केट में चार तरह के प्रमुख प्रतिभागी होते हैं:
- हेजर्स (Hedgers): ये वो लोग हैं जो अपने मौजूदा निवेश के जोखिम को कम करने के लिए डेरिवेटिव का इस्तेमाल करते हैं। जैसे, एक किसान जो अपनी फसल की कीमत को सुरक्षित करना चाहता है।
- स्पेक्युलेटर्स (Speculators): ये वो ट्रेडर हैं जो कीमतों में उतार-चढ़ाव का अनुमान लगाकर मुनाफा कमाने की कोशिश करते हैं।
- मार्जिन ट्रेडर्स: ये कम पैसे लगाकर बड़े पोजीशन लेते हैं। उदाहरण के लिए, 1 लाख रुपये के शेयर खरीदने के लिए सिर्फ 20,000 रुपये लगाना।
- आर्बिट्राजर्स: ये अलग-अलग बाजारों में एक ही संपत्ति की कीमत के अंतर से फायदा उठाते हैं।
डेरिवेटिव मार्केट के फायदे
- कम पूंजी की जरूरत: आप थोड़े पैसे लगाकर बड़े पोजीशन ले सकते हैं।
- जोखिम प्रबंधन: अपने निवेश को सुरक्षित रखने में मदद करता है।
- उच्च लाभ की संभावना: लेवरेज की वजह से ज्यादा मुनाफा कमाने का मौका मिलता है।
- बाज़ार की अस्थिरता से लाभ: कीमतों में उतार-चढ़ाव से भी पैसा कमाया जा सकता है।
- विविधता: कई तरह के डेरिवेटिव उपलब्ध हैं, जैसे फ्यूचर्स, ऑप्शंस, स्वैप्स आदि।
डेरिवेटिव मार्केट के नुकसान
- उच्च जोखिम: लेवरेज की वजह से नुकसान भी बड़ा हो सकता है।
- जटिलता: इसे समझना और इसमें ट्रेड करना मुश्किल हो सकता है।
- अस्थिरता: कीमतों में तेजी से बदलाव हो सकता है।
- रेगुलेशन: कुछ डेरिवेटिव्स पर नियंत्रण कम हो सकता है।
- समय सीमा: फ्यूचर्स और ऑप्शंस की एक निश्चित समय सीमा होती है।
डेरिवेटिव ट्रेडिंग में ध्यान देने योग्य बातें
- मार्केट रिसर्च जरूरी: बिना समझे ट्रेड न करें।
- जोखिम समझें: अपनी जोखिम लेने की क्षमता पहचानें।
- मार्जिन मनी: ट्रेडिंग शुरू करने से पहले पर्याप्त मार्जिन रखें।
- सही ब्रोकर: डेरिवेटिव ट्रेडिंग की अनुमति देने वाला ब्रोकर चुनें।
- लॉट साइज: अपनी क्षमता के अनुसार लॉट साइज चुनें।
समाप्ति
कॅश मार्केट और डेरिवेटिव मार्केट दोनों ही अपनी-अपनी जगह महत्वपूर्ण हैं। कॅश मार्केट सीधे निवेश के लिए बेहतर है, जबकि डेरिवेटिव मार्केट जोखिम प्रबंधन और उच्च रिटर्न की संभावना के लिए। नए निवेशकों को पहले कॅश मार्केट से शुरुआत करनी चाहिए और फिर धीरे-धीरे डेरिवेटिव की ओर बढ़ना चाहिए।
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